वांछित मन्त्र चुनें

त्वमा॑य॒सं प्रति॑ वर्तयो॒ गोर्दि॒वो अश्मा॑न॒मुप॑नीत॒मृभ्वा॑। कुत्सा॑य॒ यत्र॑ पुरुहूत व॒न्वञ्छुष्ण॑मन॒न्तैः प॑रि॒यासि॑ व॒धैः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvam āyasam prati vartayo gor divo aśmānam upanītam ṛbhvā | kutsāya yatra puruhūta vanvañ chuṣṇam anantaiḥ pariyāsi vadhaiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम्। आ॒य॒सम्। प्रति॑। व॒र्त॒यः॒। गोः। दि॒वः। अश्मा॑नम्। उप॑ऽनीतम्। ऋभ्वा॑। कुत्सा॑य। यत्र॑। पु॒रु॒ऽहू॒त॒। व॒न्वन्। शुष्ण॑म्। अ॒न॒न्तैः। प॒रि॒ऽयासि॑। व॒धैः ॥ १.१२१.९

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:121» मन्त्र:9 | अष्टक:1» अध्याय:8» वर्ग:25» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:18» मन्त्र:9


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वन्वन्) अच्छे प्रकार सेवन करते और (पुरुहूत) बहुत मनुष्यों से ईर्ष्या के साथ बुलाये हुए मनुष्य ! (त्वम्) तू जैसे सूर्य (दिवः) दिव्य सुख देनेहारे प्रकाश से अन्धकार को दूर करके (अश्मानम्) व्याप्त होनेवाले (उपनीतम्) अपने समीप आये हुए मेघ को छिन्न-भिन्नकर संसार में पहुँचाता है, वैसे (ऋभ्वा) मेधावी अर्थात् धीरबुद्धि वाले पुरुष के साथ (आयसम्) लोहे से बनाये हुए शस्त्र-अस्त्रों को लेके (कुत्साय) वज्र के लिये (शुष्णम्) शत्रुओं के पराक्रम को सुखानेहारे बल को धारण करता हुआ (यत्र) जहाँ गौओं के मारनेवाले हैं, वहाँ उनको (अनन्तैः) जिनकी संख्या नहीं उन (वधैः) गोहिंसकों को मारने के उपायों से (परियासि) सब ओर से प्राप्त होते हो, उनको (गोः) गौ आदि पशुओं के समीप से (प्रति, वर्त्तयः) लौटाओ भी ॥ ९ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! तुम लोग जैसे सूर्य मेघ की वर्षा और अन्धकार को दूर कर सबको हर्ष आनन्दयुक्त करता है, वैसे गौ आदि पशुओं की रक्षा कर उनके मारनेवालों को रोक निरन्तर सुखी होओ। यह काम बुद्धिमानों के सहाय के विना होने को संभव नहीं है, इससे बुद्धिमानों के सहाय से ही उक्त काम का आचरण करो ॥ ९ ॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे वन्वन् पुरुहूत त्वं सूर्यो दिवस्तमो हत्वाऽश्मानमुपनीतं प्रापयतीव ऋभ्वा सहायसं गृहीत्वा कुत्साय शुष्णं चादधन् यत्र गोहिंसका वर्त्तन्ते तत्र तेषामनन्तैर्वधैः परियासि तान् गोः सकाशात्प्रति वर्त्तयश्च ॥ ९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वम्) प्रजापालकः (आयसम्) अयोनिर्मितं शस्त्रास्त्रादिकम् (प्रति) (वर्त्तयः) (गोः) गवादेः पशोः (दिवः) दिव्यसुखप्रदात् प्रकाशात् (अश्मानम्) व्यापनशीलं मेघम्। अश्मेति मेघना०। निघं० १। १०। (उपनीतम्) प्राप्तसमीपम् (ऋभ्वा) मेधाविना (कुत्साय) वज्राय (यत्र) स्थले (पुरुहूत) बहुभिः स्पर्द्धित (वन्वन्) संभजमान (शुष्णम्) शोषकं बलम् (अनन्तैः) अविद्यमानसीमभिः (परियासि) सर्वतो याहि (वधैः) गोहिंस्राणां मारणोपायैः ॥ ९ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या यूयं यथा सविता मेघं वर्षयित्वाऽन्धकारं निवर्त्य सर्वमाह्लादयति तथा गवादीनां रक्षणं विधायैतद्धिंसकान् प्रतिरोध्य सततं सुखयत नह्येतत्कर्म बुद्धिमत्सहायमन्तरा संभवति तस्माद्धीमतां सहायेनैव तदाचरत ॥ ९ ॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जसा सूर्य मेघांची वृष्टी करून, अंधकार दूर करून सर्वांना हर्षित करतो. तसे तुम्ही गाई इत्यादी पशूंचे रक्षण करून त्यांची हत्या करणाऱ्यांना रोखून निरंतर सुखी व्हा. हे कार्य बुद्धिमान लोकांखेरीज होणे शक्य नाही. त्यामुळे बुद्धिमानाच्या साह्यानेच वरील काम करा. ॥ ९ ॥